
जिला ब्युरो गोपाल मारु रावडिया की रिपोर्ट।
सरदारपुर। खरीफ की फसल की बुआई के साथ साथ बरमंडल एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में मध्यम वर्षा से निदई गुड़ाई न करते हुए रसायनिक खरपतवार नाशक का उपयोग करने में लगे है लेकिन क्षेत्र में सोयाबीन की फसल अब लगभग एक माह की हो चुकी है इस समय खरपतवार नियंत्रण के लिए सभी किसान अब खरपतवारों के उचित प्रबंधन पर जोर देने में लगे है किसान खरपतवार नाशक दवाओं के झोले भर भर के ला रहे है और अपने आप को कर्ज तले डूबा रहे है लेकिन पूरे क्षेत्र के अंदर घटिया किस्म की नकली खरपतवार नाशक के कारण या मौसम के अनुकुल नही होने के कारण खरपतवार नष्ट नही हो रही अगर देखा जाए तो किसी किसान की खेत की खरपतवार नष्ट हो रही हैं तो किसी की नकली दवाओं के चलते सोयबीन प्रभावित हो रही है किसान इसके लिए अनोखे तरीके अपना रहे है वर्षा की कमी और खेतों में नमी न होने के कारण खरपतवार नाशकों का छिड़काव प्रभावी नहीं हो पा रहा है इसलिए किसान पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों का मिश्रण कर रहे हैं वे बैल जोड़ी, ट्रैक्टर और मोटरसाइकिल से डोरे चला रहे हैं
क्षेत्र के करीब सौ प्रतिशत किसान आमतौर पर खरपतवार नाशकों का उपयोग करते हैं लेकिन वर्तमान स्थिति में कुछ किसान ट्रैक्टर पर जुगाड़ बनाकर डोरे चला रहे हैं।कई किसान बैल जोड़ी का पारंपरिक तरीका अपना रहे हैं कुछ नवाचारी किसानों ने मोटरसाइकिल पर विशेष उपकरण लगाकर डोरे चलाने का तरीका विकसित किया है डोरे चलाने से खरपतवार नष्ट होने के साथ पौधों की जड़ों में नमी भी बनी रहती है।यह वर्षा न होने की स्थिति में फसल को सूखने से बचाती है स्थानीय भाषा में डोरे को ‘करपे’ कहा जाता है यह सोयाबीन की पंक्तियों के बीच उगी खरपतवार को नष्ट करने में कारगर साबित होता है।